इक इक दिन यूँ टूटा
सूरज हवाएं मिट्टी
सब यहीं पर छूटा
वर्षान्त सांझ की सूर्य किरण
अस्तित्व भेद मुखरित रंजित
कल नव कोपल संग नव-वर्ष वृक्ष
आंगन छाए नव सृजन मित्र
मंगल हो यह नव वर्ष हरित
सुरभित आनंदित आलोकित
हृदय कम्पन क्यों करे, जब भी देखे अश्रु उनके
छूट गए हैं अपने जिनके, छूट गए घरबार भी जिनके
प्रकर्ति का प्रकोप है क्या, कांप रहा क्यों अब ये समतल
जल में सब कुछ बह रहा, मानव अहम टूटा है पल पल
वृक्ष ये देखो भस्म हो रहे, जीवन स्त्रोत खत्म हो रहे
आसमान ये क्यों रो रहा, जीव अचानक क्यों रो रहे
भाग रहा क्यों वृक्ष लगाने, मिशन ग्रीन का अब ये दल बल
जल में सब कुछ बह रहा, मानव अहम टूटा है पल पल
वैश्विक उष्मा आज बताए, कितने जीवन आज गवाए
चले गए जो हमे छोड़कर, कैसे उनको आज बुलाएं
अपने काले कर्मों का, प्राप्त हुआ है हमको ये फल
जल में सब कुछ बह रहा, मानव अहम टूटा है पल पल
– पुनीत वर्मा, मिशन ग्रीन दिल्ली
Roads are flooded, with streams of lights
Pollution is reaching, to amazing new heights
Breaking all records, of most polluted cities
Making life darker, and making darker city nights
Lets pledge today, to stop this stupidity
And to follow green path, with great rigidity
Let’s feel our soul, and refuel ourselves
With mission Green Delhi, Let’s cool ourselves