जाते जाते बता दिया है, रवि ने दीपक जला दिया है

जड़ हुआ चेतन था अब तक
कितने सावन ऋतु वर्षा की
सिक्त हुए पत्रदल वर्षों
महका आँचल द्वार आंगन वीथि
घोला मधुरस अगणित कण्ठों में
खग के नीड़ बने बसेरे

बालपन अल्हड़ यौवन सब मुझ पर सोहे
खगकुल के संदेसे महके
झूमें डाली पत मतवाली
हर्षित उलसित मंद खुमारी
आए वसन्त फूले पुष्प गन्ध
बालाएं चपल मिल झूला झूलें

हौले हौले क्षीण हुआ सब
पत्तों ने भी किया त्याग तब
बनमाली ने नजर फिरा ली
होनी थी जो होती हो गई

श्रृंगार तजे पुष्प सब खण्डित
रंगत धूमिल छाल गवाई
धसी हुई जड़ें सब सूखीं
काया कृश रीत गई आंखें

पड़ा हुआ हूँ खड़ा हुआ हूँ
देह को मेरी अग्नि प्रतीक्षा
जले जब ज्वाला दावानल में
जाते जाते मृत्यु प्रतीक्षा

सहसा अबोध बीज आ धमका
बना मुझे अवलंब अधारा
टूटा जड़ चेतन में उभरा
बुझती हुई आंखों ने देखा

अंक की सिहरन महसूस करे यूँ
खिलखिलाहट हरे पत्तों की
शीश उठा संलग्न हुआ चेतन से
जाते जाते बता दिया है
रवि ने दीपक जला दिया है
रवि ने दीपक जला…….

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Bhupesh Khatri Ji is hindi and urdu poet who belongs to Allahabad. He works as Deputy Director (software) at IGNOU, New Delhi.

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