दिल्ली में गाँव से जब एक व्यक्ति आता है तो ये शहर उसे कई तरह के मौके देता है. कभी कभी जब अच्छा मौक़ा नहीं भी मिल पाता है, तब वो व्यक्ति किसी छोटे व्यापार से शुरुआत करता है. ऐसे कई छोटे व्यापारी मिल जाएंगे जो दिल्ली शहर में अपने सपनों को पूरा करने की उम्मीद में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं और अपना घर परिवार चला रहे हैं. जिंदगी ठीक ठाक चल रही है. लेकिन जब कोई उनके रोजगार और सपनों को तोड़ने की उम्मीद लेकर खडा हो जाता है, तब उनकी सहनशक्ति ख़तम हो जाती है और वो गेर कानूनी कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं. क्या उनको अपनी परिवार के लिए कर्म करने का हक नहीं है ? क्या उनको सपने देखने का हक नहीं है ? क्या ये शहर उनका नहीं है ? सरकार द्वारा जब भी कोई कदम उठाया जाए, तो वो कदम इन वयापारिओं के परिवार को ध्यान में रख कर उठाया जाना चाहिए क्योंकि इस शहर पर एक आम व्यक्ति का उतना ही हक होता है जितना की बड़े वयापारिओं, नेताओं और पेशेवरों का . हर एक व्यक्ति जब कभी इस शहर में आया था तो उसने जमीन से ही अपने सपनों को पूरा करने की शुरुआत की थी और आज आसमान की बुलंदिओं को छुआ है. इसलिए हमे कोई हक नहीं बनता की हम इन् व्यापारिओं से उनका इस शहर पर हक छीने.