What is Right & What is Wrong ?

आज मस्तिस्क में एक सवाल उठा है. हम अपनी डेली लाइफ में कैसे पता लगाएं की क्या सही है और क्या गलत.तो मुघे जवाब मिलता है की दुनिया में कोई भी चीज़ सही या गलत नहीं है. बल्कि मैं उसे कैसे स्वीकार करता हूँ वो भाव सही और गलत होता है.यानि अगर मैं किसी गलत चीज़ को सही भाव से स्वीकार करता हूँ वो तो सही है. और अगर किसी सही व्यक्ति को गलत भाव से स्वीकार करता हूँ वो गलत है. मेरा संचालन सही या गलत होता है. जैसे की अगर मैं किसी ग्रन्थ को पढ़ना चाहता हूँ और इस कारण उसको खोलता हूँ. फिर उसमे लिखे शब्दों को पड़ता हूँ . और फिर शब्दों के पीछे के भावों को गलत तरीके से ग्रहण करता हूँ और समझता हूँ और बांटता हूँ. तो यहाँ मैं गलत हो जाता हूँ.  सामने खड़ा व्यक्ति किसी कमजोर को नुक्सान पहुंचा रहा है और मैं राम की तरह सुग्रीव की मदद करता हूँ, तो मेरा सञ्चालन सही हो जाता है. अगर मैं इसे अनदेखा कर देता हूँ तो ये गलत हो जाता है. दो तरह के लोग है: जो सोये हुए हैं और वो जो जागे हुए हैं.पराशूट और दिमाग जब तक खुले हैं तब तक काम करते हैं. हमारा हर वो कार्य जो हमारी बंद आँखें खोल देता है वो सही है. और हमारा हर वो कार्य जो हमारे मन और बुद्धि रुपी चक्षुओं को बंद कर देता है, वो गलत है. अगर मेरा वर्तमान कार्य मेरे ज्ञान चक्षुओं को खोल रहा है, तो मेरा आज सही होगा.  अगर मेरा आज या वर्तमान सही है तो वो सही भूतकाल में बदल जाएगा. और अगर भूतकाल और वर्तमान सही हैं तो भविष्य का निर्माण सही होगा.

 

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Transformational human inside me

ऐसा लगता है की मैं एक व्यक्ति नहीं हूँ बल्कि छे तरह के मानवों का एक समूह हूँ.  और कुछ ही पल में इस समूह में से एक मानव खड़ा हो जाता है और बाकी सब बैठ कर उसकी बातें सुनते हैं. आज मैं ग्रीन स्क्रीन पर इन् पांच मानवों का एक एक कर के अपने आप से परिचय करवाऊंगा.  पहला मानव बहुत ही भावनात्मक और गुस्से वाला है.  ये मानव दिल का साफ़ है और आसानी से प्यार और  ममता जैसे गुणों में बंध जाता है. फिर इसके लिए इस बंधन से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. ये दूसरों का दुःख नहीं देख सकता है और अपनों को नुक्सान पहुंचाने से डरता है. दूसरा मानव हमेशा दुनिया से कटा हुआ रहता है और केवल अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही हर कार्य करता है. इसको दुनिया में किसी की परवाह नहीं है. जब भी आप इससे बात करेंगे तो ये केवल अपने लक्ष्य की बातें करेगा और बाकी हर चीज़ को नकार देगा. तीसरा मानव वो है जिससे हम हमेशा दूर रहना चाहते हैं. क्योंकि ये हमेशा हर चीज़ में कमी निकालता है. आप अगर इससे थोड़ी दूर भी बैठे हैं तो ये आपको एहसास करवाएगा की आप परनोइड हैं. कृपया इस मानव को ज्ञान ना बांटें. चौथा मानव वो है जो हमेशा हरियाली और समृधि की बातें सोचता है और करता है. ये बहुत ही रचनात्मक है और कल्पनाओं और योजनाओं का भण्डार है.ये हर चीज़ में कुछ नया और अलग ढूँढता है. पांचवा मानव वो है जो सबको आगे बदने की प्रेरणा देता है और हमेशा सकारात्मक और जिंदगी में आगे बदने की बातें करता है. और छठा मानव मैं हूँ जो आकाश की तरह खड़ा होकर इन सभी मानवों का ध्यान रखता है और इनको सही समय पर बिठाता और उठाता रहता है.

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From Jungle to Ram Rajya

किसी ने सच कहा है की शेर जंगल का राजा होता है.  अगर हम अपनी दुनिया को जंगल बना देते हैं तो उस जीवन के रखवाले यानी हम, एक जानवर के समान हो जाते हैं. जंगल का अर्थ है वो जगह जहां एक प्राणी दुसरे प्राणी से डर कर भाग रहा है और दूसरा अपनी भूख मिटाने के लिए उसका पीछा कर रहा है. यानी जो डर कर भाग रहा है वो भी जानवर के समान है और जो डरा रहा है वो भी जानवर के समान है. हमे कभी भी जंगल में कोई प्राणी किसी  दुसरे प्राणी की रक्षा करता हुआ नहीं मिलेगा. आज हमारा शहर एक जंगल की तरह बनता जा रहा है, जो की कभी राम राज्य हुआ करता था. आज के इस चमकते जंगल में प्राणी वो  जानवर बन गया है जो अपनी इंसानी समझ का इस्तेमाल जानवर रूपी कार्यों को पूरा करने के लिए कर रहा है. और अतीत गवाह है की जब जब ऐसा जंगल बना है, तब तब राम अपना राज्य छोड़कर इस जंगल की तरफ बड़े हैं और उन्होंने फिर से इस जंगल को राम राज्य में बदला है. और ऐसे जंगल में कुछ लोग अर्जुन के सामान सत्य के लिए युद्ध लड़ रहे है. लेकिन युद्ध में जब वो अपनों को देखते हैं तो शांत और निराश हो कर बैठ जाते हैं. और फिर जब ऐसा होता है तो परम परमेश्वर कृष्ण आकर अर्जुन को रथ पर बिठा कर सारथि बन जाते हैं और अपनी चतुराई से उसको राम राज्य की तरफ अग्रसर करते हैं. और ऐसे जंगल में राम को अपनी सेना की आवश्यकता नहीं पड़ती और कृष्ण को अपने सुदर्शन चक्र की आवशयकता नहीं पड़ती. वो केवल बनवासी और सारथि के रूप में ही विश्व को बदल देते हैं. आज के इस जंगल में शेर बहुत चतुर हो गया है और अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार का समान करता है. अगर समान से भी शिकार नहीं मानता तो वो दंड का इस्तेमाल करता है. अगर दंड से भी शिकार पर कोई असर नहीं पड़ता तो वो उसको पुरस्कार से ललचाता है. और अगर पुरस्कार से उसका  काम ना बने तो वो भ्रम का सहारा लेकर अपने शिकार को चमकीले सपने दिखाता है. अगर शिकार भ्रम में नहीं फंसता तो वो विभाजन कला का सहारा लेता है. और अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार को जात पात और धर्म  के नाम पर , लिंग के नाम पर , देशों और राज्यों के नाम पर , जीवनशैली के नाम पर कमजोर बनाता है. और फिर भी शिकार उसके पंजों में नहीं फंसता तो वो उसकी उपेक्षा कर के अपना ध्यान हटाने का ढोंग करता है और अन्तं में जब उसको सफलता नहीं मिलती तो वो शिकार की कमजोरिओं और सेना शक्ति को अपने बस में करता है और अपनी भूख शांत करता है. लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जो चाणक्य की तरह इस चक्र्वुह को  समझ पाते हैं. और जिनको थोडा बहुत इस चक्र्वुह का ज्ञान हो जाता है, वो अभिमन्यु की तरह लड़ते हैं और और अपना बलिदान दे देते हैं. और जो राम और कृष्ण की  शिक्षा को साथ लेकर चलता है,  वो इस जंगल को राम राज्य में बदल पाता है.

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